बज़ट क्या है, बज़ट के प्रकार – Types Of Budget

बज़ट यह शब्द आपने जरूर सुना होगा| अक्सर लोग आपसी बातचीत में घरेलू बज़ट के बनने और बिगड़ने की बात करते है| लेकिन क्या आप देश के बज़ट के बारे में जानते है| सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष के दौरान किए गए आय और व्यय के ब्यौरे को साधारण भाषा में बज़ट कहते है| केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2024 के बज़ट को पेश किया गया है|

इस बज़ट के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा देश को यह बताया जाता है, कि किस मद से आय प्राप्त होगी, या किस मद पर कितना खर्च किया जाएगा| अगर आप बज़ट के महत्व और कार्यप्रणाली को समझना चाहते है, तो यहाँ पर आपको बज़ट क्या है और बज़ट कितने प्रकार के होते है, की विस्तृत जानकारी दे रहे है|

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बज़ट क्या है (Budget)

सबसे पहले आप यह जान ले, कि बज़ट क्या है| सरकार देश के लोगो को रोटी, कपडा और मकान की सुविधा प्रदान करने के लिए जो नीति अपनाती है, उस पर करोड़ों रूपए खर्च किए जाते है| यह खर्च तभी संभव है, जब आमदनी होगी| जिस तरह से सभी लोग अपना खर्च चलाने के लिए किसी न किसी तरह से पैसे बनाने पड़ते है| इन पैसो को बनाने के लिए लोग कोई कारोबार या नौकरी कर पैसे अर्जित करते है| लोग अपने खर्चो और प्राप्तियों का लेखा-जोखा तैयार करते है, और उसी के अनुसार रणनीति बनाते है|

ठीक वैसे ही भारत सरकार भी अपनी आमदनी और खर्चो का ब्यौरा प्रत्येक वर्ष संसद में पेश करती है| सरकार जो अपने वर्ष भर के खर्चो और आमदनी के विवरण को बताती है, वही वर्ष भर का यूनियन बज़ट कहलाता है|

बज़ट के मुख्य बिंदु (Budget Highlights)

लेख का नामबज़ट क्या है, बाजार के प्रकार
बज़ट का मंत्रालयवित्त मंत्रालय (Ministry of Finance)
बज़ट की पेशकशकेंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा
बज़ट की वेबसाइटindiabudget.gov.in
वर्ष2024

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बजट की परिभाषा (Budget Definition)

पैसो को खर्च करने के लिए बनाई गई योजना की प्रक्रिया को बज़ट कहते है| हम किस चीज में या किस कार्य में कितना पैसा खर्च करेंगे, इस तरह की योजना बनाना ही बज़ट तैयार करना है| बाजार निर्धारित करते समय यह तय किया जाता है, कि किस कार्य में कितना पैसा लगाया जाएगा, तथा किस चीज के लिए कितना पैसा पर्याप्त होगा| आप खर्च योजना बनाने से पहले यह सुनिश्चित कर सकते है, कि आपके पास किस चीज पर खर्च करने के लिए पर्याप्त धन है, या नहीं| बज़ट एक ऐसी प्रक्रिया है, जो आय के साथ खर्च को मैनेज करना का काम करती है|

देश के विभिन्न खर्चो और प्राप्तियों से देश को चलाने के लिए बज़ट बनाया जाता है, और फिर उसे संसद में पेश किया जाता है| संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार देश का राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष में लोकसभा और राज्यसभा में वित्तीय विवरण रखता है| जिसमे सरकार के पिछले वर्ष के आय और खर्चो का पूरा ब्यौरा होता है|

बजट का अर्थ (Meaning of Budget)

‘बज़ट’ शब्द को फ्रेंच भाषा के शब्द ‘बूजट’ (Bougette) से लिया गया है| फ्रेंच भाषा में बूजत का मतलब ‘झोला’ है| वर्ष 1733 में जब सर रॉबर्ट वालपोल (ब्रिटिश वित्त मंत्री) ने संसद में वित्तीय प्रस्तावों से जुड़े कागजों को एक चमड़े के थैले से निकालकर पेश किया, तो उस समय वहां पर बैठे लोगो ने उनका मज़ाक बनाते हुए कहा कि बज़ट खोला गया है|

इस घटना पर बाद में एक पुस्तिका प्रकाशित की गई, जिसका नाम ‘बजट खोला गया’ रखा गया| इस घटना के पश्चात् ही बज़ट शब्द का उपयोग सरकार द्वारा वार्षिक आय-व्यय के विवरण को दर्शाने के लिए किया जाने लगा| बज़ट का साधारण सा अर्थ एक निश्चित समय अवधि में अनुमानित खर्चो और प्राप्तियों के लेखा-जोखा व विवरण को रखना है|

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जीडीपी पर आधारित बज़ट (GDP Based Budget)

सरकारी राजस्व का 85 फीसदी भाग सभी नागरिको से उठाए गए टैक्स से आता है| यह तो आप सभी जानते है, कि टैक्स दो तरीके के होते है, पहला डायरेक्ट टैक्स जिसमे कॉर्पोरेट टैक्स और इनकम टैक्स शामिल है| दूसरा इनडायरेक्ट टैक्स है, जिसमे GST, पेट्रोल व डीजल पर Excise Duty और कस्टम ड्यूटी शामिल है| सरकार को इन करो के अलावा एक और तरह से राजस्व मिलता है, जिसे नॉन टैक्स रेवेन्यू कहते है, यह भी कई तरह के होते है|

भारत सरकार एक निश्चित अवधि में किए गए अनुमानित खर्चो और प्राप्तियों के पूरे लेखे-जोखे के विवरण को बज़ट में दर्शाता है| इसके बाद सरकार द्वारा किए गए खर्चो के आधार पर बज़ट तैयार होता है| देश में किसी वर्ष उत्पादित होने वाले उत्पाद और सेवाओं के बाजार मूल्य को GDP कहते है, और देश का यही बज़ट GDP पर आधारित होता है| इसी GDP के माध्यम से सरकार अपना राजकोषीय घाटा तय करती है|

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बजट के प्रकार (Budget Types)

बज़ट मुख्यत: 3 तरह के होते है, जो निम्न है:-

पारंपरिक या आम बजट:- आम बजट प्रारंभिक रूप पारंपरिक बज़ट है| यह बज़ट मुख्य रूप से कार्यपालिका और विधायिका पर वित्तीय नियंत्रण स्थापित करता है| इस बज़ट में सरकार द्वारा किए गए आय और व्यय का विवरण होता है| अगले वर्ष किस क्षेत्र में कितना धन खर्चा किया जाएगा, इसका उल्लेख भी सरकार इसी बज़ट में करती है, लेकिन इस खर्च के क्या परिणाम होंगे, इसका विवरण नहीं दिया जाता है|

यह बजट सरकारी खर्चो को नियंत्रित कर विकास कार्यो को लागु करने के उद्देश्य से जारी किया गया था, न कि तीव्र गति से विकास करने के लिए| इस तरह से स्वतंत्र भारत की समस्याओं का समाधान करने और विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में पारंपरिक बज़ट असफल रहा| परिणामस्वरूप भारत सरकार द्वारा निष्पादन बजट को महत्व दिया गया, जिसके बाद से पारंपरिक बज़ट को पूरक के रूप में पेश किया जाता है|

निष्पादन बजट:- किसी कार्य के परिणाम को ध्यान में रखकर जो बज़ट तैयार किया जाता है, उसे निष्पादन बजट कहते है| विश्व में निष्पादन बजट की शुरुआत सबसे पहले अमेरिका में हुई थी| अमेरिका में प्रशासनिक सुधारों के लिए वर्ष 1949 में हूपर आयोग का गठन हुआ| इसी आयोग की सिफारिश पर निष्पादन बजट को आरंभ किया गया था| इस बज़ट में सरकार देश के लोगो के लिए क्या, कितना और कितनी कीमत लगाकर भलाई कर रही है, जैसी बातो को ध्यान में रखा जाता है| भारत में निष्पादन बज़ट कार्यपूर्ति या उपलब्धि बजट भी कहलाता है|

शून्य आधारित बजट:- शून्य आधारित बजट अपनाने के पीछे दो मुख्य कारण है, जिसका विवरण इस प्रकार है:-

  • देश के बजट में होने वाले लगातार घाटे को ध्यान में रखना
  • निष्पादन बजट का सफल कार्यान्वयन न हो पाना|

शून्य आधारित बजट में पिछले वित्तीय वर्ष में हुए व्ययों पर कोई विचार न करके| आगामी वर्ष में इस बात पर विचार किया जाता है, की व्यय करना है, या नहीं| शून्य आधारित बज़ट में किए जाने वाले प्रत्येक कार्य के लिए शून्य आधार को निर्धारित किया जाता है| इसमें पुराने व्यय का नए व्यय से कोई लेना-देना नहीं होता है| बल्कि सभी कार्यो के लिए नई नीति निर्धारित की जाती है| यह बज़ट सूर्य अस्त बजट कहलाता है, जिसका कार्य वित्तीय वर्ष के समाप्त होने से पहले सभी विभागों को शून्य आधारित बज़ट का ब्यौरा देना है|

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बजट में किए गए अब तक के बदलाव (Budget Changes)

  • वर्ष 1955 तक BUDGET को सिर्फ में अंग्रेजी में ही छापा जाता था|
  • वर्ष 1956 में बजट की छपाई हिंदी भाषा में भी होने लगी|
  • वर्ष 1999 से पूर्व देश के बजट को शाम 5 बजे पेश करते थे, तथा वर्ष 1999 से बजट को प्रत्येक वर्ष सुबह 11 बजे पेश किया जाने लगा|
  • वर्ष 2016 तक प्रत्येक वर्ष बज़ट को फ़रवरी महीने के अंतिम दिन पेश करते थे|
  • रैलवे के बज़ट को वर्ष 2016 तक अलग से पेश किया जाता था|
  • वर्ष 2017 में बज़ट को पेश करने के लिए फ़रवरी की पहली तारीख को चुना गया|
  • रेलवे के बजट को वर्ष 2017 से आम बज़ट में शामिल कर दिया गया|

देश में किस वित्त मंत्री ने कितनी बार बज़ट पेश किया (Country Finance Minister Presented the Budget Times)

वित्त मंत्रियों के नामबजट पेश संख्या
मोरारजी देसाई10
पी चिदंबरम9
प्रणब मुखर्जी9
यशवंत राव चव्हाण7
सीडी देशमुख7
यशवंत सिन्हा7
मनमोहन सिंह6
तीती कृष्णमाचारी6

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बजट की तैयारी कितने दिन पहले से (Budget Preparation Days Before)

वार्षिक बजट पेश करने के लिए बजट बनाने की तैयारी 6 महीने पहले से ही शुरू हो जाती है| आमतौर पर सितंबर के महीने में बजट बनाने की तैयारी शुरू कर दी जाती है| वर्ष 2018 तक वित्त मंत्रियो द्वारा बजट के दस्तावेज ब्रीफकेस में लाए जाते है| वर्ष 2019 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट के दस्तावेज फ़ाइल में लाए गए थे| इसके बाद वर्ष 2020 में वित्त मंत्री सीतारमण द्वारा एक टैबलेट के माध्यम से बजट को पढ़ा गया|

राष्ट्र निर्माण के लिए पूँजी बजट (Nation Building Capital Budget)

पूँजी बजट का उपयोग राष्ट्र निर्माण के लिए किया जाता है| इस बजट के अंतर्गत सरकार दीर्घकालिक योजनाएं जैसे:- Broadband Cables, बांध (Dams), Power Grid, रेल मार्ग और सड़क निर्माण कार्यो के लिए हिसाब लगाती है| इन प्रोजेक्ट्स पर होने वाले इन्वेस्टमेंट को पूँजी व्यय कहां जाता है| इसके अलावा लोन, कंपनियां व शेयर पर होने वाला निवेश भी पूंजीगत व्यय के तहत होता है|

इन पूंजीगत खर्चों को पूरा करने के लिए सरकार पूंजी संपत्तियां बेचकर या फिर लोन लेकर धन की व्यवस्था करती है| सरकार आमतौर पर बांड्स के माध्यम से जनता से बड़ी मात्रा में धन एकत्रित करती है| इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान जैसे:- विश्वबैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष या एशियाई विकास बैंक से भी पैसा उधार लेती है|

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वित्त और विनियोग विधेयक क्या है (Finance and Appropriation Bill)

जब प्रत्येक वर्ष बजट पेश किया जाता है, तो उसमे जरूरत के अनुसार सरकार टैक्स की दर में कुछ बदलाव करती है| इस तरह के बदलाव करने के लिए कानून में भी कुछ बदलाव करना पड़ता है| लेकिन कानून में बदलाव करने के लिए संसद में विधेयक पास कराना होता है| इसलिए प्रत्येक वर्ष के बज़ट को वित्त विधेयक कहां जाता है|

वित्त विधेयक में कर ढांचे और दूसरे नियमो में बदलाव किया जाता है| संसद जब इस तरह के बदलाव को पास करती है, तब बज़ट के नए प्रस्ताव लागू होते है| संसद को 75 दिनों में फाइनेंस बिल पास करने होते है| लेकिन यह प्रक्रिया काफी कम समय में पूरी हो जाती है| वर्ष 2017 से सरकार वित्त विधेयक को 31 मार्च से पहले ही पास करा लेती है, और नया वित्त वर्ष नए बज़ट प्रस्ताव के साथ लागु हो जाता है| सरकार को बज़ट के साथ विनियोग विधेयक भी लाना होता है| क्योकि संसद की अनुमति के बिना सरकार समेकित निधि से कोई धन नहीं खर्च सकती है| इसलिए इन पैसो को उपयोग करने के लिए विनियोग विधेयक लाने की जरूरत पड़ती है|

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बज़ट पास करने की प्रक्रिया (Budget Passing Process)

बज़ट पेश होने के बाद उसे पास होने में कई प्रक्रियाओं से गुजरना होता है, जिसकी विस्तृत जानकारी इस प्रकार है:-

  • बजट सत्र की शुरुआत:- पूरे वर्ष संसद तीन सेशन में बंटा होता है| इसमें पहला सेशन बज़ट दूसरा मानसून और तीसरा सेशन शीट का होता है| इस तीनो सेशन में सबसे सघन और लंबा सत्र बजट सेशन का है| बज़ट सत्र दो भागो में बंटा है, जिसमे पहला चरण मात्र 8-10 दिन का होता है, और दूसरा चरण 4-5 सप्ताह का होता है| इन दोनों चरणों के मध्य एक माह का अवकाश रखा जाता है| जनवरी के आखरी हफ्ते से बज़ट सत्र की शुरुआत हो जाती है, जो अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक चलता है| इसके शुरू या ख़त्म होने की कोई निश्चित तिथि नहीं होती है|
  • इकॉनमी सर्वे:- राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ बज़ट सत्र की शुरुआत होती है, और उसी दिन देश का इकॉनमी सर्वे भी पेश किया जाता है| इस सर्वेक्षण में देश के इकोनॉमी की दिशा और दशा की जानकारी होती है, जिसके आधार पर बज़ट का आइडिया मिलता है|
  • वित्त विधेयक:- सरकार फ़रवरी की पहली तारीख को वित्त विधेयक पेश करती है, जिसे पेश करते हुए सुबह 11 बजे वित्त मंत्री लोकसभा में बज़ट का भाषण देता है| आरंभ में वित्त मंत्री सरकारी योजनाओं की उपलब्धियों के बारे में बताता है, और फिर बाद में किस मंत्रालय और योजना में कितना पैसा आवंटित किया गया है, के बारे में भाषण देता है| इसके बाद भाषण के अंतिम चरण में वित्त मंत्री टैक्स दर में किए गए बदलाव के बारे में जानकारी देता है| इसमें डायरेक्ट और इनडायरेक्ट दोनों टैक्स शामिल है| वित्त मंत्री द्वारा दिए गए बज़ट के भाषण के बाद संसद को अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया जाता है| भाषण समाप्त होने के पश्चात् वित्त मंत्री राज्यसभा में वित्त विधेयक पेश करता है, जिसके लिए कोई भाषण नहीं दिया जाता है|
  • वित्त विधेयक पर सामान्य चर्चा:- बजट भाषण पेश होने के बाद अगले दिन संसद में दिए गए बज़ट प्रस्तावों पर सामान्य चर्चा की जाती है| इस चर्चा में नीतिगत मुद्दे उठाए जाते है| यह बहस 4-5 दिन चलती है| इस दौरान संसद में होने वाली नियमित कार्यवाही भी सामान्य रूप से चलती रहती है|
  • संसद स्थगित:- बज़ट पर सामान्य चर्चा करने के पश्चात् संसद एक माह के लिए स्थगित कर दी जाती है, ताकि बज़ट प्रस्तावों का ठीक तरह से अध्ययन किया जा सकें|
  • स्थायी समिति विचार:- जब संसद एक महीने के लिए स्थगित की जाती है, तो उसी समय में स्थायी समिति द्वारा अपने क्षेत्र के बज़ट प्रस्तावों पर गहन चर्चा की जाती है| यह समितियां तय समय पर सरकार को सिफारिश देती है| हालाँकि यह जरूरी नहीं है, कि सरकार इन सिफारिशों को स्वीकृत ही करे|
  • स्थायी समिति में राज्यसभा और लोकसभा दोनों ही के सांसद होते है| कुछ विषयो जैसे:- सार्वजनिक उपक्रम, सार्वजनिक खाते और Estimate के लिए स्थायी समिति हमेशा ही बनी रहती है|
  • बजट पर चर्चा:- बज़ट सत्र के दूसरे चरण में चर्चा मंत्रालयों के अनुसार बज़ट प्रस्तावों पर विस्तृत चर्चा करने के लिए कई दिनों में बाँट दिया जाता है| इस दौरान भी संसद में दूसरे कार्य नियमित रूप से चलते रहते है| सरकार बज़ट सत्र में कई दूसरे विधेयक भी स्वीकृत करा लेती है|
  • बजट पर वोटिंग:- चूंकि 1 अप्रैल से बज़ट प्रस्ताव लागू करना होता है, इसलिए सरकार को उससे पहले ही वित्त और विनियोग विधेयकों को पास करवाना होता है| इन विधेयकों की स्वीकृति के लिए लोकसभा में वोटिंग की जाती है| यह वोटिंग भी सभी बज़ट प्रस्तावों के लिए भिन्न-भिन्न होती है| इसका मतलब यह है, कि लोकसभा किसी भी प्रस्ताव को गिरा सकती है| हालाँकि बहुमत प्राप्त होने पर बज़ट का प्रस्ताव पास हो जाता है| क्या आप जानते है, कि अगर लोगसभा सरकार के वित्त विधेयक को पास नहीं करती है, तो सरकार को इस्तीफा देने की नौबत आ सकती है|

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वर्ष 2023 का बज़ट कब और किसके द्वारा पेश किया गया?

देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 2023 के बज़ट को 1 फ़रवरी को पेश किया गया|

स्वतंत्र भारत के पहले बज़ट को किसने पेश किया था?

भारत के स्वतंत्र होने पर 26 नवंबर 1947 को पहला बज़ट पेश किया गया था, जिसे के.शनमुखम चेट्टी ने पेश किया था, जबकि आज़ादी से पहले भारत के पहले बज़ट को वर्ष 1860 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री जेम्स विल्सन द्वारा पेश किया गया था|